गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014


***** संजारी *****


संजारी ३४ किलोमीटर सड़क के किनारे लगे मील के पत्थर पर अंकित इन अक्षरों ने हमें समय के बहाव के विपरीत यानि २५ वर्ष पहले के जीवन में ले जाकर खड़ा कर दिया, "संजारी" यानि बड़ी हवेली, काली माँ का मंदिर, नीलगगन को चूमती संजारी की पहाड़ी की चोटियां, भले मनुष्य, बचपन के खेल, संगी-साथी, अंतुले का जंगल, माँ अम्बे की आरती, पिता जी महराज, रानी माँ, दुआ करती गौहर बुआ, खान बाबा और उनका झोला, काली रात, घोड़ों के ऊपर नकाबपोश, जोर की आवाजें, खंजर, और अचानक हमें लगा . . . . . . . 

" सर, क्षेत्र के सभी बुजुर्ग और प्रमुख व्यक्तिओं को निमंत्रण दिया गया है, जैसा की आपका निर्देश था," गाड़ी की पिछली सीट पर अधलेटे से हम किसी दूसरी दुनिया से बाहर आये जैसे ही हमारे कानो में ये शब्द आये " मुन्नी अम्मा, लाजो मौसी, बड्डे भैया, गौरी काकी, कवेलू काका, शमशेर चाचा, पुजारी मामा, गौहर बुआ, जमुना काकी, सुनहरे बाबा, सिट्टू पहलवान, नंदू भाऊ, जैसे प्रतिष्ठित और आपके द्वारा बताये गए सभी व्यक्ति वहां पर पहुँच गए हैं,"निजी सचिव के शब्द हमारे आस पास मंडरा रहे थे जैसे हवा में तैरते हुए पानी के बुलबुले हमारे पास आ आकर अपना अस्तित्व खो देते हैं, " बस अभी खान बाबा नहीं पहुंचे हैं, " अंतिम शब्दों ने हमें अपनी आँखें खोलने पर मजबूर कर दिया. हमारी प्रश्नवाचक दृष्टि जैसे ही निजी सचिव पर पड़ी, " सर वहां से कोई उत्तर भी नहीं है, और गाड़ी भी खाली वापस आ गयी है, " सफारी सूट, छोटे कांच का चश्मा, करीने संवारे बाल, हाथ में डायरी, और महंगे एंड्राइड मोबाइल के साथ व्यवस्थित निजी सचिव दुबे जी कुछ पल को रुके, " सर मुझे नहीं लगता की अब वहां से कोई आने वाला है " 

हमें लगा दुबे जी अपनी पारखी नज़रों से हमें परखने की कोशिश कर रहे हैं, " सुदर्शन आगे से लेफ्ट ले लेना, " 25 साल यानि साढ़े तीन दशक, 9125 दिन, उफ़ एक उमर गुज़र गयी मगर यहाँ से सब वैसा ही हैं, वैसा ही रास्ता टेड़ा मेढ़ा गड्डों भरा, वही पीपल का पेड़, पहले से थोड़ा बड़ा लेकिन गन्दा नाला, एक तरफ पहाड़ी, दूसरी तरफ थोड़ा सा शेष रह गया जंगल, जंगल पहले तो बहुत था, अब जंगल की जगह शेष रह गए हैं छोटे छोटे खेत जिनमे फसलें लहलहा रही थीं, 
" सर आगे रास्ता बंद है, " ड्राइवर सुदर्शन ने हमें बताया 
" सामने मंदिर के बगल से जो पेड़ दिख रहा है उसके आगे बड़ी चट्टान से पीछे तरफ जाने पर रास्ता मिल जायेगा" सुदर्शन और दुबे जी की आँखों असमंजस के भाव थे, " है रास्ता वहीँ से है मज़रा टोला के लिए " हमारे शब्दों ने सुदर्शन को गाड़ी को आगे बढ़ाने पर मज़बूर कर दिया 
" सर आप खुद मज़रा टोला जा रहे हैं, " दुबे जी का आश्चर्य-मिश्रित स्वर सुनकर हम मुस्करा उठे " सर सेकुरिटी " इस बार वह कुछ चिंचित लगे " कोई बात नहीं दुबे जी होइहे वही जो राम रची राखा" हमें लगा हम दुबे जी दिलासा नहीं उपदेश दे रहे हैं.
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अर्ध आधुनिक मकान के सामने गाड़ी रुकते ही बच्चों की भीड़ लगने लगी, कुछ बड़े भी आ गए, चबूतरे पर बैठे हुए वृद्ध को देखकर हमारी आँखों में चमक आ गयी, 
" खान बाबा" हम बस इतना ही कह पाये की वह वृद्ध बोलने लगे. 
" देखिये जनाब, ठाकुर सज्जन सिंह के बाद हमारे घर से किसी ने भी सियासी मज़मों में शिरकत करना छोड़ दी है," वही ६ फ़ीट लम्बा दबंग शरीर, चेहरे पर घनी सफ़ेद दाड़ी, आँखों में हलकी लालिमा, चेहरे से झुर्रियां झाकने लगी थी, " आप खामखाह अपना वक़्त जाया कर रहे हैं," 
" बाबा यह मंत्री जी कुंवर श्री सूर्योदय प्रताप सिंह हैं " दुबे जी ने परिचय देना चाहा लेकिन हमने हाथ के इशारे से रोक दिया 
" काला पत्थर, काला पीपल, और काला पहाड़, खान बाबा के झोले में खुशियों का झाड़" सुनकर बाबा हड़बड़ा गए, दुबे जी अवाक् से खड़े कभी हमारा तो कभी बाबा का चेहरा देख रहे थे, 
" मणि, मेरा मणि, मेरा बच्चा" कहते हुए बाबा चबूतरे के नीचे आ गए हाथों में हाथ थामकर " कहाँ चला गया था मेरे बच्चे, कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा तुझे, " दुबे जी के चेहरे से ऐसा लगा जैसे उन्होंने ताजमहल को सामने डांस करते देख लिया हो, जबकि खान बाबा अपने हाथों से हमें पूरा मापना चाह रहे थे, " शाजरा की अम्मी देख तो कौन आ गया, अरे जल्दी आ, मेरा मणि आ गया, " बाबा की आवाज़ से ख़ुशी और आँखों से आंसू मानों झरनो से शर्त लगाकर बहने लगे, " कितना ढूंढा, कहाँ नहीं ढूंढा, " 
"मणि बाबा, कहाँ है, " दरवाज़े पर खड़ी वृद्ध महिला की आवाज़ ने हमें उनकी तरफ मुड़ने पर मजबूर कर दिया, एक अजनबी को देखकर कुछ झिझकी मगर उत्सुकता कम नहीं हुई, 
" चाची अम्मी, " स्वर सुनकर उनके चेहरे पर ममता का सागर उमड़ आया, " मणि, कितना बड़ा हो गया, " हमारे हाथों को अपने हाथों में थाम लिया चाची अम्मी ने " या अल्लाह तेरा लाख लाख शुक्र है, मेरे बच्चे को सही सलामत भेज दिया" कहते हुए उनके हाथ बलायें लेने की मुद्रा में उठ गए. अब तक पास पड़ोस में खुसर फुसर शुरू हो चुकी थी, कुछ ऐसे थे जिनके लिए यह अजूबा था, कुछ को जानकारी थी तो उनके चेहरे से भी ख़ुशी झाँकने लगी, तब तक बैठने को कुछ कुर्सियां आ गयी, अब जाकर दुबे जी को रहत मिली, माज़रा कुछ समझ आया,
" खान बाबा, संजारी चलें" हमारे कहने पर वह बोले " अच्छा तो बुलावा यहाँ से आया था, " उनके चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट खेलने लगी, " रुक जा दो लम्हे " कहते हुए खान बाबा उठकर अंदर चले गए, 
" चाची अम्मी, शाजरा आपा कहाँ हैं?" शब्दों के साथ हमारी नज़रों ने भी उनसे सवाल कर डाले, " ऊपर वाले की मर्ज़ी से अपने घर में राज़ी ख़ुशी से है बेटा, " शब्दों के साथ उनके मन की ख़ुशी झलक रही थी, " तुझे बहुत याद करती है, हमेशा कहती है अगर मेरा मणि होता तो ऐसा होता" अबकी बार उनकी आँखें भी ख़ुशी से छलकने लगी थी, आँखें फिर अतीत में जाने लगी " बेटा तुम्हे तो सब याद है, " चाची अम्मी के शब्दों ने हमें अतीत में जाने से रोक लिया, 
" अरे लाडला एक अरसे के बाद आया है तो चाय पानी पिला दो, या सारी ममता सूखी-सूखी जतानी है, " खान बाबा के कहने पर चाची अम्मी उठने लगी तो हमने उनको रोका "चाची अम्मी हम लौटकर आते हैं फिर सब कर लेंगे, चलें खान बाबा" खान बाबा अपने पसंदीदा पोशाक पठानी कुरता-पैजामा, सदरी, और पगड़ी, में बिलकुल २५ वर्ष पहले के खान बाबा लगने लगे थे, " बरखुरदार तुम माँ - बेटे लगे हो बातों में ये बूढ़ा तो कब का तैयार खड़ा है"



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