मंगलवार, 2 जून 2015

***** औरत जात *****
" ऐसो हमने तो आज लो नई देखो" बड़की फुआ की ताने मारती आवाज़ ने भग्गू (भाग्यवंती) के कानो में तेज़ाब घोल दिया " औरत जात हो के कुल्फी बेचवे जे हे " 
" काये घर के आदमी मर गए का " बुआ की हाँ में हाँ मिलाते हुए कल्लू (पति) की आवाज़ को सुनते ही भग्गू की आत्मा त्राहिमाम कर उठी जबकि गमछे को मरोड़ते हुए कल्लू की आवाज़ कर्कश हो उठी " नाक काट जेहे बिरादरी में हमाई" 
" तो का करे बाल बच्चे मरवे के लेन छोड़ दे " बिफरती हुई भग्गू दरवाज़े की ओट से बाहर आ गई " बड़े आये नाक वाले, नाक की इत्ती फिकर है ता काये ४-४ दिना दारू पि के डरे रात, " भग्गू की आवाज़ और तेज़ होती जा रही थी " लरका मोडियन के हाथन में टीन को कटोरा थमा दें भीख मांगवे के लाने" २ पल को सन्नाटा सा छा गया,
" इ में अगर तुम्हे नाक कटत होए ता अपने हाथ लगा लियो" तेज़ होती साँस को सम्हालने में फिर एक माँ की आवाज़ रुकी " हमाये बाल बच्चन के लाने के लेन उनकी मताई है अवे, कुल्फी बना हैं, मजूरी कर हैं, दुसरं के बासन भांडे मांज ले है " आँखों मे से चमकता गुस्सा आक्रोश बनने लगा,
" बड़की फुआ औरत जात हो के अगर ओरत आदमियन हाँ पैदा कर सकत ता पल पोस के बड़ों सोयी कर सकत उ के लाने हमें कोई के प्रवचन नई सुनने" कहते हुए दोनों बच्चों को अपने सीने से लगा लिया।

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मित्रो औरत जात, बुंदेली बोली में लिखी एक ऐसी लघु कथा है जिसका सीधा सम्बन्ध समाज में महिलाअो के समक्ष आने वाली मुश्किलों से है, आज भी समाज के कई वर्गों में महिलाओं को सिर्फ इस आधार पर शोषित किया जाता है की वह महिला हैं, देश, वर्ग, जाती, समाज, भाषा, नगर, देहात, कहीं भी हों, हमारे आस पास ही हज़ारों ऐसी सत्य घटनायें मिल जाती है, जिसमे महिला को परिवार की इकाई न मानकर, बेजुबान जानवर माना जाता है, लघु कथा औरत जात पूरी तरह काल्पनिक नहीं है, सत्य घटना को कल्पना से जोड़कर यह बताने का प्रयास किया है कि महिला दीन हीन बेजुबान नहीं है, आप सभी की राय की प्रतीक्षा में 

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