बुधवार, 17 सितंबर 2014

***** अधखुली आँखों से सपना*****

"क्यूँ चौंक गए ना?" तुम्हारा चहकता हुआ स्वर सुनकर हम सच मैं चौंक गए,
लैपटॉप को टेबल पर रखते हुए हमें लगा हमें सच मैं बहुत ख़ुशी हुई तुम्हें अपने साथ देखकर,
" तुम कब आई?" कुर्सी पर पसरते हुए हमने सवाल किया, 
क्यूंकि हमें पता था, अगले कुछ पलों मैं तुम्हारे हाथ कि बनी गरमागरम कॉफ़ी मिलने वाली है,
" अभी एक घंटे पहले " सच मैं तुम जब सामने आई तो हाथ मैं ट्रे जिसमें कॉफ़ी के दो मग और पानी से भरा गिलास रखा था.
" चलो अब जल्दी से कोई अच्छी खबर सुनाओ?" पानी का गिलास हाथ मैं देते हुए तुमने कहा,
" तुम्हें कैसे पता? " एक बार फिर तुमने मुझे चौंका दिया,
" नहीं पता नहीं है, बस मन ने कहा तो मेने पूछ लिया" दोनों के सामने मग रखते हुए बोली तुम,
" हाँ हमें कांट्रेक्ट मिल गया" कॉफ़ी सिप करते हुए हम बोले, तो तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट और भी जयादा खिल उठी,
कुछ पल सन्नाटा फिर आ गया जैसे मन कि बातें मन से होने लगी, जिनमें जुबान कि जरुरत ही नहीं थी,
" चलो हिल स्टेशन चलते हैं" तुम्हारे शब्दों ने मुझे यथार्थ मैं लाकर खड़ा कर दिया,
" हां चलो" कहता हुआ मैं खड़ा हो गया,
" कल रविवार है, कल वहीँ रुकेंगे" हम तुरंत तैयार हो गए,
" बाकी के तीनो नंबर बंद करो, कल कोई कल नहीं होना चाहिए" तुमने हमारे हाथ से मोबाइल लेते हुए कहा, " कल पूरे दिन सिर्फ घूमना है सब कुछ भूलकर"
" गुड मोर्निंग, गुड मोर्निंग, गुड मोर्निंग, " कि धुन ने हमें सपने से जगा दिया,
मोबाइल मैं देखा तो ये तुम्हारा मेसेज था, गुड मोर्निंग मेसेज,
फिर वो क्या था,
और हम मुस्करा पड़े क्यूंकि सुबह का सपना देखा था, अधखुली आँखों से

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